जनता के जख्मों पर नमक छिड़कती ब्लैकमेल की राजनीति

एक बार फिर हनीट्रैप वाला जिन्न मुंह फाड़े सियासत की दहलीज पर आ खड़ा है। अट्टहास करता यह जिन्न धमकी के साथ राजनीति के पतन की कहानी बयां कर रहा है। चिराग में पसरे जिन्न को तब बाहर निकाल लिया गया जब स्वार्थ में पगे समीकरण कड़वे होने लगे। दरअसल मंत्री एवं कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार एक
कानूनी पचड़े में क्या पड़े,  पूरी कांग्रेस तिलमिला सी गयी। मामला इतना बढ़ा कि आरोप प्रत्यारोप की सीमा लांघता हुआ सीधे सीधे धमकी तक जा पहुंचा। पहले सत्ता से खारिज और फिर  करीबी सिंधार पर मामला दर्ज होने से बौखलाए कमलनाथ,उबल से पड़े। पूर्व मुखामंत्री ने बाकायदा एक प्रेस कांफ्रेस करके धमकी वाले अंदाज में चेताया कि हनीट्रैप पेन ड्राइव अभी भी उनके पास है,जिसमे सारे राज दर्ज है. इधर भाजपा ने विपक्ष से पाने दावे को प्रमाणित करने की पुष्ठि दे मारी।  
        खैर मुद्दा यह कतई नहीं कि सत्ता पक्ष और विपक्ष एक बार फिर महामारी के इस कठिन दौर  में भी हल्की राजनीति पर उतारू हैं। लेकिन सवाल यह जरूर है कि हनीट्रैप मामले में एक अहम सबूत माने जाने वाली पेन ड्राइव का क्या राजनीतिक फायदे के लिए उपयोग किया जा रहा है? जांच एजेंसी सबूतों गवाह के अभाव का हवाला देकर मामले की तह तक पहुँचने में हांफने लगी हैं। जबकि बड़े बड़े नेता सबूत अपनी जेब में होने का दावाठोंक रहे हैं। शर्मनाक है, इस गंभीर मामले के आरोपी खुली हवा मे अपने मंसूबे पूरा करने में बेफिक्री से व्यस्त हैं और यहाँ पेन ड्राइव के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही हैं। वर्तमान हालातों में आवश्यक था कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों एक साथ मिलकर आम जनता का सहारा बनते। सत्ता पक्ष भी इस मसले पर धैर्य का परिचय देता हुआ अपना पूरा ध्यान कोरोना,ब्लैक फंगस जैसी जानलेवा बीमारियों पर लगाता। लेकिन सत्तापक्ष भी इस मामले को तूल देते हुए एक कदम और आगे बढ़ गया। सम्भव है 
कि ध्यान बंटाने के अंदाज में मुद्दों घिसे पिटे मुद्दों को सियासी पानी देकर पनपाने की जुगत हो। जो भी हो अभी नेताओं से साथ की आशा कर रहे 
मतदाताओं को तो यह नाटक साल गया। खैर,अब यदि विपक्ष ने दावा किया है कि तथाकथित पेन ड्राइव उसके पास है तो तत्काल  जांच एजेंसियों को कार्रवाई करते हुए अहम सबूत हासिल करना चाहिए। सवाल सत्ता पक्ष से भी होया,कि यदि दावा सत्य है तो इतनी मजबूरी क्या थी जो मौन रहना पड़ा? इस सबके परे यदि दावा सिर्फ सियासी शगूफा है तो भी स्पष्ट होना चाहिए ताकि आम मतदाताओं के सामने स्वार्थ की राजनीति का बचा खुचा सच आने के साथ ब्लैकमेल की राजनीति का भी पटाक्षेप हो।

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