
मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने अपने पूर्व सांसद और पूर्व विधायक लक्ष्मण सिंह को कारण बताओ नोटिस थमा दिया है. लक्ष्मण सिंह मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई हैं.
कांग्रेस का मानना है कि बीते कुछ समय में लक्ष्मण सिंह ने अपने बयानों से पार्टी का अनुशासन तोड़ा है.
दरअसल पहलगाम आतंकी हमले के बाद लक्ष्मण सिंह ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि इस हमले में कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का हाथ है. इसलिए कांग्रेस को कश्मीर में उमर की नेशनल कोंफ्रेस पार्टी की सरकार से नाता तोड़ लेना चाहिए। लक्ष्मण सिंह ने यह भी कहा कि पहलगाम कांड को लेकर कोई भी बयान देने से राहुल गाँधी और रॉबर्ट वाड्रा (राहुल गाँधी के जीजा) को अपने शब्दों पर ध्यान देना चाहिए।
कभी राजगढ़ से सांसद तो कभी चाचौड़ा से विधायक रह चुके लक्ष्मण सिंह तबीयत से धाकड़ हैं और बेख़ौफ़ भी. वो खुलकर बात रखने में कोई झिझक नहीं दिखाते हैं.
बीते साल की ही बात लीजिए। राहुल गाँधी ने विदेश में अपने ही देश के खिलाफ बड़ा बयान दिया। लक्ष्मण सिंह ने सोशल मीडिया पर खुलकर इस बयान का विरोध किया था. हालाँकि पार्टी ने शायद तब इस तरफ ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा रहा होगा। मगर अब जब उनके टारगेट पर राहुल सहित उनके जीजा रॉबर्ट भी आ गए हैं, तब पार्टी ने सख्त रुख दिखाया है.
प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी की अनुशंसा पर लक्ष्मण सिंह को कांग्रेस सांसद तारिक अनवर ने यह नोटिस थमाया है. इसमें कहा गया है कि लक्ष्मण सिंह के कई बयानों से पार्टी की प्रतिष्ठा और एकता को ठेस पहुँची है. राहुल गाँधी पर लक्ष्मण के हालिया बयान के लिए तो नोटिस में लिखा गया कि उन्होंने सारी हदें पार कर दी हैं.
अनवर ने लक्ष्मण सिंह को अपनी सफाई देने के लिए दस दिन की मोहलत दी है. अब आगे क्या होगा, यह दिख ही जाएगा, लेकिन पीछे तो यह भी हुआ है कि लक्ष्मण ने एक बार खुद ही कांग्रेस छोड़ दी थी. लक्ष्मण सिंह अपने परिवार के जबरदस्त प्रभाव वाली राजगढ़ लोकसभा सीट पर उन्नीस सौ चौरायनवे से उन्नीस सौ निन्यानवे तक लगातार चार चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जीते .इस पूरी अवधि में दिग्विजय राज्य के मुख्यमंत्री थे .लेकिन सन दो हजार तीन के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय की सरकार खेत रही यानी चुनाव हार गयी. इधर हालात बदले और उधर छोटे भाई यानी लक्ष्मण के मिजाज भी बदल गए.
सन दो हजार चार के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले लक्ष्मण अचानक भाजपा में चले गए और एक बार फिर कमल पर सवार होकर उन्होंने लोकसभा तक का सफर तय कर लिया।
लक्ष्मण का भाजपा के लिए यह चौंकाने वाला लगाव फिर तब अलगाव में बदल गया, जब वह इस पार्टी के प्रत्याशी के रूप में दो हजार नौ में अपनी पुरानी पार्टी के उम्मीदवार के हाथों राजगढ़ से ही हार गए. इसके बाद राज्य में दो हजार तेरह के विधानसभा चुनाव आए और इसकी गहमागहमी के बीच लक्ष्मण कांग्रेस में लौट आए.
साल 2023 के विधानसभा चुनाव में लक्ष्मण सिंह चाचौड़ा सीट पर हार गए. लेकिन सियासी सफलता और विफलता के बीच लक्ष्मण सिंह के तेवर कभी भी शांत नहीं पड़े. उन्होंने किसी भी मसले पर खुलकर अपनी बात रखने से कोई परहेज नहीं किया।
गुना से लेकर राजगढ़ तक ‘छोटे राजा साब’ के रूप में पहचाने जाने वाले लक्ष्मण सिंह जीवन के सत्तर वसंत देख चुके हैं. वो अब पार्टी में अपने लिए पतझड़ जैसे इन हालात का कैसे सामना करेंगे, यह समय ही बताएगा। लेकिन लक्ष्मण सिंह को बहुत अधिक नजदीक से न जानने वाले भी एक बात तय मान रहे हैं. वो ये कि ‘छोटे राजा’ झुकने वालों में से नहीं हैं.
(लोकदेश के लिए रत्नाकर त्रिपाठी की रिपोर्ट)