

मैरी टेलर बरसों पहले इंग्लैंड से भारत आई थीं। यहां पश्चिम बंगाल में उन्हें जेल में डाल दिया गया। हालाँकि उन पर नक्सलियों से संबंध का आरोप था, लेकिन इसमें कितना दम रहा, यह इस बात से ही समझा जा सकता है कि उन्हें अदालत में पेश ही नहीं किया गया। इसी हालत में उन्होंने पूरे पांच साल यहां की जेल में बिताए।
टेलर की इस बारे में बहुचर्चित किताब ‘माय इयर्स इन एन इंडियन प्रिजन’ की स्मृति आज फिर ध्यान खींच रही है। यह ख्याल आ रहा है कि गिरफ्तारी के बाद इसी पश्चिम बंगाल ले जाई गई भारतीय युवती शर्मिष्ठा पनोली पर फिलहाल क्या बीत रही होगी? टेलर ने तो जेल में जो देखा, उसका कई जगह खौफनाक वर्णन भी किया। तो क्या शर्मिष्ठा भी टेलर जैसे हालात से ही दो-चार हो रही होंगी? मैं इस बात का पुरजोर समर्थक हूं कि किसी भी अन्य व्यक्ति की भावनाओं को आहत करने का किसी को भी अधिकार नहीं है। इसलिए जब पनोली के लिए कहा जा रहा है कि उन्होंने एक समुदाय की भावनाओं को आहत किया तो गिरफ्तारी पर कोई सवाल नहीं उठने चाहिए। लेकिन ये तो उस राज्य का मामला है, जहां की सत्ता के चलते शर्मिष्ठा के लिए कई डरावने विचार मन में आना स्वाभाविक हैं। बुजुर्गों से सुनता आया हूं कि आपातकाल के दौरान जनसंघ से जुड़ी एक वरिष्ठ नेत्री को गिरफ्तार कर जेल में उस कोठरी में रखा गया था, जहां मानसिक रूप से विक्षिप्त और बेहद खतरनाक स्वभाव की अपराधी महिलाएं भी सजा काट रही थीं। मौजूदा पश्चिम बंगाल में अघोषित आपातकाल के अनेक शर्मनाक उदाहरण हैं। वहां शासन कर रही तृणमूल कांग्रेस का एक नेता राज्य के एक इलाके को गर्व के साथ ‘मिनी पाकिस्तान’ कह चुका है। बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के लिए यह राज्य स्वर्ग है और जय श्रीराम का नारा लगाने वालों के लिए यहां नर्क जैसा बंदोबस्त तुरंत ही सुनिश्चित कर दिया जाता है। मुर्शिदाबाद में हिंदू बाप-बेटे सिर्फ इसलिए नृशंस तरीके से मार दिए जाते हैं कि देश की संसद ने वक्फ बिल संशोधन कानून को मंजूरी दे दी है। हिंदुओं के विरुद्ध हुई इस लोमहर्षक हिंसा के बीच यह भी याद दिला दें कि खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वक्फ संशोधन कानून को अपने राज्य में लागू न होने देने का ऐलान किया है। दंगाइयों को प्रश्रय/प्रोत्साहन देने वाली यह घोषणा मुर्शिदाबाद हिंसा के बढ़ावे का बहुत बड़ा कारण बनी है। मुर्शिदाबाद में हिंदू अपने हाल पर छोड़ दिए गए, जबकि जबकि संदेशखाली में बेबस हिंदू महिलाओं से सामूहिक दुराचार के आरोपी तृणमूल नेता शाहजहां शेख को बचाने के लिए ममता बनर्जी अदालत सहित केंद्रीय जांच एजेंसियों से टकराने में भी पीछे नहीं दिखती हैं। यहां ममता के राज में एक से अधिक बार यह हुआ है कि दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन पर सरकार ने रोक लगाई और फिर अदालत के हस्तक्षेप से ही हिंदू पक्ष को राहत मिल सकी। रामनवमी का जुलूस निकालना तो खैर ममता के शब्दकोष में आज भी राजद्रोह से कम वाले गुनाह की हैसियत नहीं रखता है।
तो ऐसे राज्य में जब मुस्लिमों के खिलाफ बोलने के चलते किसी शर्मिष्ठा को कैद किया जाता है तो उसकी स्थिति के लिए चिंता होना स्वाभाविक है। फिर हुकूमत को तो शायद यह भी नागवार गुजरा होगा कि शर्मिष्ठा ने ऑपरेशन सिंदूर के लिए भारतीय सेना की तारीफ क्यों कर दी? क्योंकि ममता तो वो रकम हैं, जिन्होंने अपनी पार्टी के मुस्लिम सांसद यूसुफ़ पठान को उस सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल का हिस्सा बनने नहीं दिया, जो विदेश में जाकर ऑपरेशन सिंदूर के पीछे पाकिस्तान के करतूत गिनाने का काम कर रहा है।
इन सबके बीच शर्मिष्ठा का क्या होगा और उसके साथ क्या-क्या होगा, इसकी कल्पना मात्र से सिहरन हो जाना बेहद स्वाभाविक प्रक्रिया है। निश्चित ही शर्मिष्ठा के मामले में कानून अपना काम करेगा, लेकिन समय-समय पर इसी कानून को आँख दिखाने वाली हुकूमत शर्मिष्ठा के साथ किस हद तक गुजर जाएगी, यह बात बुरी तरह डरा रही है। आखिर ये पश्चिम बंगाल का मामला है। आखिर ये ममता बनर्जी के अपनी शैली वाले पश्चिम बंगाल का मामला है। तो क्या बहुत कुछ ऐसा हो जाएगा कि जेल से निकलने के बाद शर्मिष्ठा भी मैरी टेलर की तरह किताब लिखेंगी?यदि ‘हाँ’ हैरत न हो कि उसका शीर्षक ‘माय इयर्स इन ए नॉन-इंडियन प्रिजन’ रखा जाए।

(लोकदेश के लिए प्रधान संपादक तेजभान पाल का साप्ताहिक एक्स-रे)