
सुनील त्रिवेदी
==================================================यह तब की बात है, जब कागजों पर सिमटा-सकुचा साहित्य भी किसी तरह हांफ-हांफ कर ही आगे बढ़ रहा था. दुर्भाग्य से मैं भी इसका साक्षी बना. ‘सारिका’ ने दम तोड़ने की कगार पर आने से ठीक पहले-पहले एक कहानी प्रकाशित की. शीर्षक था, ‘जियो जीआर यार’. कहानी अद्भुत थी. समाज में ऊंच-नीच के तयशुदा खांचे का अतिक्रमण करती थी कि कैसे कोई कमतर वर्ग का कहलाने वाला बैंड मास्टर जीआर इसी समाज में पनप रही कुछ सुरंगों की वजह से इतना प्रभावशाली हो जाता है कि उसके बजते बैंड के बीच संबंधित बारात वाले उस परिवेश की महिलाएं भी बीच सड़क पर अपने नृत्य वाले कौशल की ‘सार्वजनिक नुमाइश’ करने से खुद को नहीं रोक पाती हैं. नृत्य की कला तो साक्षात परमेश्वर नटराज का वरदान है. उसमें भला किसी को दिक्कत क्यों होना चाहिए। इसलिए जीआर की कहानी से आगे मैं ये कहना चाहता हूँ कि आपका खुली सड़क पर खुले अंदाज में यूं नाचना क्या आपकी किसी दबी-कुचली इच्छा का प्रतीक है? स्त्री मेरे लिए भी आधी आबादी के रूप में पूजनीय है. ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते’ पर मेरा भी परिवार के परिवेश सहित परवरिश के साथ भी अगाध विश्वास है. किंतु क्या आपको ये पता है कि सार्वजनिक जगह पर यूं नृत्य को वो लोग किस रूप में लेते और इस्तेमाल करते हैं. जो ये चाहते हैं कि आप समानता के नाम पर ये सब करें और वो आपका वीडियो बनाकर घनघोर अभद्र शीर्षक के साथ सोशल मीडिया पर उसे पोस्ट कर दें? मैं एक महिला को जानता हूँ. वो भद्र पत्नी एक शादी में दो या तीन बार अपने नृत्य कौशल का परिचय दे गई. पूरी सावधानी के साथ कि हर ऐसे डांस में यह भी दिख जाए कि वो अपने पति के लिए ऐसा कर रही है. लेकिन उसके इस वीडियो पर नीच मानसिकता में लिपटी हुई इतनी प्रतिक्रिया दिखीं कि उस भद्र महिला का सोशल मीडिया पर दिखना ही बंद हो गया. विवशता के चलते।

(लेखक सुनील त्रिवेदी)
नारी सौंदर्य के उपासक तो परमेश्वर भी रहे हैं. सृष्टि के रचयिता शिवजी ने माँ पार्वती के लिए क्या नहीं किया? यहां तक कि गोस्वामी तुलसीदास जी भी रामचरितमानस में हर उल्लेखनीय वाक्य के लिए माँ पार्वती से शिवजी के संवाद की व्याख्या करते रहे हैं? लेकिन आप कैसे भूल जाती हैं कि आपका सौंदर्य आकर्षण का विषय होने से अलग काम पिपासा का केंद्र न बन जाए? बात आपको प्रतिबंधित करने की नहीं है, बात केवल यह बताने की है कि आपके अंदर की प्रतिभा का यूं प्रकटीकरण करते समय यह देखिए कि हम कहीं ‘हट कर सोचने’ वाली गंदी मानसिकता के शिकार तो नहीं हो रहे हैं?
निश्चित ही आप स्वतंत्र हैं, किन्तु यह ध्यान रखिए कि स्वतंत्रता का अतिरके उस जगह जाकर ख़त्म होता है, जहाँ किसी सूटकेस में किसी का निर्जीव पाया जाता है और एक बार मुर्दा बनने के बाद न कोई आपको बचा सकेगा और न ही कोई आपके लिए सहानुभूति रखेगा।
आप शक्ति हैं और हम आपके उपासक। निवेदन मात्र यह कि शक्ति बने रहिए, इस्तेमाल न होइए। जीओ जीआर यार ने जो बताया था, वो आपके लिए निंदा नहीं था, लेकिन आज के हालात आपके उस व्यवहार के लिए घोरतम निंदा का प्रसार कर रहे हैं, जो चेतावनी हैं कि स्वतंत्रता को स्वछंदता में न बदलिए। बीते कल की सारिका उदाहरण है और आपके लिए आज ये चेतावनी कि सही अर्थ में मानव जीवन के लिए आदर्श तारिका बनिए।
लोकदेश के लिए सुनील त्रिवेदी