Tuesday, April 29, 2025
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वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा- क्या मुसलमानों को हिंदू ट्रस्टों में शामिल करेंगे?

Delhi … वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में इस कानून पर तत्काल रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन केंद्र सरकार से जवाब जरूर मांगा . कोर्ट ने कानून के विरोध में देशभर में हो रही हिंसक घटनाओं पर चिंता जताते हुए स्पष्ट किया कि हिंसा के जरिए न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

कानून लागू होने के बाद से देशभर में विरोध

मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मामले की सुनवाई की।

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पैरवी की, जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी और सीयू सिंह ने दलीलें रखीं।

संसद द्वारा पारित वक्फ संशोधन अधिनियम को 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी और सरकार ने इसे 8 अप्रैल से लागू कर दिया।

इस कानून लागू होने के बाद से ही इसके खिलाफ देशभर से 100 से अधिक याचिकाएं दाखिल की गई।

इनमें मुख्य रूप से तीन बिंदुओं पर आपत्ति जताई गई है, पुरानी वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन, वक्फ बोर्ड की सदस्यता में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना और वक्फ बनाने की पात्रता को लेकर लगाए गए नए नियम

मुसलमानों को हिंदू ट्रस्टों में शामिल करेगी सरकार

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कई गंभीर सवाल केंद्र सरकार से पूछे। CJI ने कहा, “क्या केंद्र सरकार मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का सदस्य बनने की अनुमति दे सकती है? अगर नहीं, तो फिर वक्फ बोर्ड में हिंदुओं की सदस्यता कैसे न्यायोचित ठहराई जा सकती है?”

जस्टिस संजय कुमार ने भी सवाल उठाया, “क्या तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट जैसे संस्थानों में किसी गैर-हिंदू को सदस्य बनाया जाता है?” कोर्ट का यह रुख स्पष्ट करता है कि वह समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के तहत सभी धार्मिक समुदायों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करना चाहता है।

सिब्बल ने कहा- यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि नया कानून आर्टिकल 26 के तहत मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

उन्होंने कहा कि वक्फ मुस्लिम समुदाय की आस्था से जुड़ी संस्था है, इसलिए इसके संचालन और प्रबंधन का अधिकार केवल मुस्लिम समुदाय को ही होना चाहिए। उन्होंने इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता में दखल बताया।

सिब्बल ने कहा, “अब कानून कहता है कि वक्फ बनाने के लिए यह साबित करना होगा कि व्यक्ति पिछले 5 वर्षों से मुस्लिम है। अगर मैं जन्म से मुस्लिम हूं तो मुझे यह साबित करने की क्या आवश्यकता है?”

सिब्बल ने कोर्ट के सामने तर्क रखा कि इस कानून से देश के 20 करोड़ मुस्लिमों के धार्मिक अधिकारों को आघात पहुंचा है। उन्होंने कहा कि यह आस्था के अभिन्न अंगों में सरकार द्वारा हस्तक्षेप है, जो संवैधानिक अधिकारों के विपरीत है।

पुरानी वक्फ संपत्तियों पर रजिस्ट्रेशन की शर्त पर विवाद

सुनवाई के दौरान यह मुद्दा भी उठा कि कई वक्फ संपत्तियां सैकड़ों साल पुरानी हैं और उनके पास रजिस्ट्रेशन दस्तावेज या डीड नहीं है।

कोर्ट ने पूछा कि 14वीं या 16वीं शताब्दी की मस्जिदों को किस आधार पर रजिस्टर किया गया?

CJI खन्ना ने कहा कि “वक्फ बाई यूजर” (यानी लंबे समय से जिस संपत्ति का उपयोग धार्मिक कार्यों के लिए हो रहा है) एक मान्य आधार रहा है।

अगर इस प्रावधान को हटाया गया तो वैध वक्फ संपत्तियां भी कानूनी मान्यता से वंचित हो जाएंगी।

SG तुषार मेहता ने तर्क दिया कि रजिस्ट्रेशन 1995 से अनिवार्य था और नया कानून कुछ नया नहीं लाया है।

उन्होंने कहा, “अगर रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ तो मुतवल्ली को जेल जाना पड़ेगा, यह प्रावधान पहले से ही है।”

विवाद की जांच सरकारी अफसर से करवाने पर आपत्ति

कपिल सिब्बल ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि इस कानून के अनुसार यदि वक्फ संपत्ति को लेकर विवाद हो तो उसकी जांच एक सरकारी अधिकारी करेगा

उन्होंने कहा कि यह असंवैधानिक है, विवाद के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया होनी चाहिए, न कि कार्यपालिका द्वारा फैसला।

वहीं सुनवाई के दौरान CJI ने कहा कि संविधान का आर्टिकल 26 धर्मनिरपेक्ष है और सभी धार्मिक समुदायों को अपनी संस्थाएं स्थापित करने और संचालित करने का समान अधिकार देता है।

उन्होंने कहा, “सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, हिंदू ट्रस्टों के लिए भी कानून बनाए गए हैं। दोनों को समान रूप से देखना होगा।”

फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई गुरुवार दोपहर 2 बजे तय की है। कोर्ट ने कहा कि वह सभी पक्षों की दलीलें सुनकर मामले पर विस्तार से विचार करेगा। हालांकि फिलहाल कानून पर रोक नहीं लगाई गई है।