
बिहार में फिर बिग हार से बचने के लिए एनडीए को ऐसे घेरने की कोशिश में हैं राहुल गांधी
बिहार में बीते 35 साल से सियासी सूखा झेल रही कांग्रेस इस राज्य में अपनी खोई जमीन तलाशने के लिए फिर सक्रिय हो रही है. इस राज्य में आने वाले अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव संभव हैं.
इस राज्य में आख़िरी बार 1990 में कांग्रेस का मुख्यमंत्री बना था. जगन्नाथ मिश्र की इस पारी के बाद से यहां कांग्रेस के पंजे में खुद के बूते पर राजयोग फिर अब तक नहीं आ सका है. कुल 243 सदस्यों वाली राज्य विधानसभा में कांग्रेस के पास महज 17 विधायक हैं. यानी इस प्रदेश में कांग्रेस के लिए अपनी खोई जमीन तलाशने का पहला लक्ष्य तो यही है कि राष्ट्रीय जनता दल से आगे जाकर मुख्य विपक्ष बने. हालाँकि ऐसा होना बहुत कठिन दिखता है. लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के पास विधानसभा में 72 विधायक हैं.
कांग्रेस के पास फ़िलहाल यही विकल्प है कि वो लालू की पार्टी के पीछे चलते हुए अपनी ताकत के खोए सूत्र तलाशती रहे.
हालाँकि विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस बड़ा दांव चलने की कोशिश में है. पार्टी ओबीसी विभाग ने बिहार में अति पिछड़ा समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ‘जाति नहीं, जमात’ अभियान की शुरुआत की है। विभाग उन्हें यह विश्वास दिलाने का प्रयास भी कर रहा है कि पार्टी टिकट में अब उनकी आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी मिलेगी। ओबीसी विभाग के अध्यक्ष अनिल जयहिंद इस अभियान को लेकर बेहद उत्साहित हैं.
बिहार के जातिगत सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में अति पिछड़ों की आबादी 36 प्रतिशत है और यह पिछले कई वर्षों से जनता दल (यूनाइटेड) का मजबूत वोट बैंक माना जाता है। यानी कांग्रेस इस प्रयोग के माध्यम से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को घेरने की कोशिश में है. नीतीश के स्वास्थ्य को लेकर उनकी सियासी पारी का भविष्य अनिश्चित दिखने लगा है. ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि इन जातियों को यदि समय रहते फिर अपनी तरफ न खींचा गया तो वो भाजपा के साथ चली जाएंगी।
फिर भी इस प्रयोग में दिक्कत भी पेश आ रही है. खुद जयहिंद कहते हैं कि यदि किसी अति पिछड़ी जाति की आबादी तीन प्रतिशत है, फिर भी जरूरी नहीं है कि कई क्षेत्रों में उनकी आबादी 30-35 प्रतिशत हो। ऐसे में उस जाति के उम्मीदवार को टिकट देने से लोग हिचकते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम इस चलन को तोड़ना चाहते हैं। हमारा यह कहना है कि अति पिछड़ी जातियों को जाति नहीं, बल्कि जमात बनकर वोट करना है।
राहुल गांधी पिछले तीन महीनों के भीतर तीन बार बिहार का दौरा कर चुके हैं। उनके दौरे के मुख्य केंद्रबिंदु भी संविधान, अनुसूचित जाति, पिछड़े, अति पिछड़े रहे हैं।
कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले दलित नेता राजेश कुमार को बिहार प्रदेश की कमान भी सौंपी है।
(लोकदेश डेस्क/ एजेंसी)