Friday, June 6, 2025
Google search engineGoogle search engine
Homeराज्यआदिवासियों के 'शिवाजी' भभूत सिंह, जिनके सम्मान में पचमढ़ी जा रही मोहन...

आदिवासियों के ‘शिवाजी’ भभूत सिंह, जिनके सम्मान में पचमढ़ी जा रही मोहन यादव सरकार

मध्यप्रदेश सरकार मंगलवार 3 जून, 2025 को सतपुड़ा की वादियों में बसे पचमढ़ी के राजभवन में गोंड राजा भभूत सिंह की याद में अपनी मंत्रिपरिषद की बैठक आयोजित करेगी, जिन्होंने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी। 

यह बैठक भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा आदिवासी नायकों को सम्मानित करने के प्रयासों का हिस्सा है।  

सोमवार को एक अधिकारी ने कहा कि मुख्यमंत्री मोहन यादव की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में राजा भभूत सिंह की बहादुरी और विरासत को विशेष रूप से याद किया जाएगा, जिन्हें आदिवासी गौरव और वीरता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।

अधिकारियों के अनुसार, गोंड शासक सिंह के योगदान के कारण पचमढ़ी का ऐतिहासिक महत्व है। सिंह ने शासन, सुरक्षा और सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करने के लिए पहाड़ी इलाकों का उपयोग किया।  मुऊ यादव ने एक बयान में कहा, ‘‘मंत्रिपरिषद की अगली बैठक आदिवासी राजा भभूत सिंह जी की स्मृति में पचमढ़ी में होगी। पचमढ़ी न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, बल्कि यह हमारे आदिवासी समाज की सांस्कृतिक विरासत से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। राज्य सरकार हर गौरवशाली पहलू को उजागर करने और समाज के हर वर्ग के हितों का ख्याल रखने के प्रति दृढ़ संकल्पित है।’’  मध्यप्रदेश के एकमात्र पर्वतीय पर्यटन केंद्र के रूप में जाना जाने वाला पचमढ़ी भगवान भोलेनाथ के निवास के रूप में भी प्रतिष्ठित है। लगभग 1,350 मीटर (4,429 फीट) की ऊंचाई पर सतपुड़ा पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटी धूपगढ़ एक प्रमुख आकर्षण है।  

एक अधिकारी ने कहा कि धूपगढ़ से सूर्योदय और सूर्यास्त के शानदार दृश्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं और यह क्षेत्र गोंड साम्राज्य के तहत एक बार रणनीतिक महत्व रखता था, विशेष रूप से प्राकृतिक संरक्षण के मामले में।  

प्रशासनिक दृष्टिकोण से पचमढ़ी में मंत्रिपरिषद की बैठक करना क्षेत्र की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकी विरासत को मान्यता देने का काम करता है।  

अधिकारियों ने बताया कि राजा भभूत सिंह ने जल,जंगल,जमीन को बाहरी आक्रमणकारियों और ब्रिटिश सेना से बचाने के लिए आदिवासी समुदाय को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।  

उन्होंने ब्रिटिश शासन का सक्रिय रूप से विरोध किया और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महान स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे को समर्थन दिया।  तात्या टोपे के आह्वान पर राजा भभूत सिंह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए और सुरम्य सतपुड़ा घाटियों में आगे बढ़ गए। 

ऐसा कहा जाता है कि तात्या टोपे और उनकी सेना ने आठ दिनों तक पचमढ़ी में डेरा डाला और नर्मदांचल क्षेत्र में भभूत सिंह के साथ मिलकर क्रांतिकारी कार्रवाई करने की योजना बनाई।  अधिकारी ने कहा कि हर्राकोट के जागीरदार के रूप में भभूत सिंह का आदिवासी समुदाय पर महत्वपूर्ण प्रभाव था, जिसने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।  सतपुड़ा के बीहड़ इलाकों को समझने से जुड़ी उनकी महारत ने उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ प्रभावी गुरिल्ला युद्ध का नेतृत्व करने में सक्षम बनाया।  पहाड़ी रास्तों से अपरिचित अंग्रेजों पर बार-बार घात लगाकर हमला किए गए जिससे वे निराश हो गए।

 ऐतिहासिक संदर्भों से पता चलता है कि भभूत सिंह की सैन्य शक्ति शिवाजी महाराज के बराबर थी।

 अधिकारी ने कहा कि शिवाजी महाराज की तरह वह हर पहाड़ी दर्रे से अच्छी तरह परिचित थे और उन्होंने युद्धों के दौरान अपने इस ज्ञान का लाभ उठाया। इसमें डेनवा घाटी में हुआ एक महत्वपूर्ण संघर्ष भी शामिल था, जिसमें ब्रिटिश सेना की ‘मद्रास इन्फैंट्री’ को हार का सामना करना पड़ा। 

ब्रिटिश इतिहासकार इलियट ने उल्लेख किया कि राजा भभूत सिंह को पकड़ने के लिए ‘मद्रास इन्फैंट्री’ को विशेष रूप से तैनात किया गया था।  इसके बावजूद सिंह और उनकी सेना ने 1860 तक सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से ब्रिटिश नियंत्रण का विरोध करना जारी रखा और विशेष रूप से 1857 के विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

(लोकदेश डेस्क/एजेंसी।भोपाल)