Monday, June 9, 2025
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Homeसोशल मीडिया सेचुनाव हो जाने दीजिए, 'रुप्पन यादव' बाइज्जत घर लौट आएंगे 

चुनाव हो जाने दीजिए, ‘रुप्पन यादव’ बाइज्जत घर लौट आएंगे 

यह अरबों रुपए के चारा घोटाले का अदालती निर्णय आने से काफी पहले की बात है। तब तेजी से आगे बढ़ रहे एक हिंदी दैनिक ने लालू प्रसाद यादव का एक आलेख प्रकाशित किया। इसमें यादव ने सार्वजनिक जीवन में शुचिता को लेकर अपने विचार प्रकट किए थे। यादव का नाम और उनके विचारों के बीच दूर-दूर तक कोई साम्य की  तब भी कोई गुंजाइश नहीं थी। लिहाजा अगले ही दिन अख़बार में पाठकों के कई खत छपे, जिनमें ‘ऐसे’ विषय पर ‘वैसे’ व्यक्ति के विचारों के प्रकाशन को लेकर दुखद आश्चर्य और गुस्सा जताया गया था। वह अखबार एक बड़ी आत्मघाती दुर्घटना के मुहाने पर आकर थम गया। उसने लालू को फिर इस तरह कभी भी अपने यहां स्थान नहीं दिया  और आज उसकी गिनती देश के शीर्ष हिंदी दैनिकों में की जाने लगी है। 

यही लालू यादव आज अपने बड़े बेटे तेजप्रताप यादव के लिए सोशल मीडिया पर प्रकट हुए हैं। उन्होंने तेजप्रताप को राष्ट्रीय जनता दल सहित अपने परिवार से भी बेदखल करने की घोषणा कर दी है। क्योंकि इस बेटे ने एक और बड़ा धमाका करते हुए इसी सोशल मीडिया पर एक युवती के साथ अपने विवाह पूर्व से लेकर अब तक संबंध होने की बात का खुद ही खुलासा कर दिया है। यहां लालू जब इस निर्णय के लिए निजी जीवन में नैतिक मूल्यों की दुहाई देते हैं, तो ये मूल्य सियासी मंडी के उस गल्ले पर जाकर टिक जाते हैं, जहां यादव परिवार के लिए बीते दो दशक से भी  अधिक समय से ‘बोनी’ का टोटका बना हुआ है। साल 2005 में राबड़ी देवी के बाद से अब तक लालू के कुनबे का कोई भी सदस्य बिहार का मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। ऐसा नहीं कि ये परिवार सियासी सूखे का शिकार रहा हो। लालू इस बीच अपनी सियासी तिकड़म से नौवीं फेल बेटे तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री और इंटरमीडिएट पास तेजप्रताप को स्वास्थ्य मंत्री बनवा चुके हैं। पत्नी राबड़ी और बेटी मीसा के सियासी रसूख में भी लालू ने कोई कमी नहीं आने दी है। लेकिन जिस शख्स ने कभी प्रधानमंत्री पद का भी ख्वाब देखा हो, उसे मुख्यमंत्री से नीचे  भला क्या स्वीकार हो सकता है? फिर जब बात लालू जैसी निरंतर सियासी छटपटाहट वाली हो तो मामला नीम और करेला वाला हो ही जाता है।

खुद लालू चारा घोटाले के अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए हैं। भ्रष्टाचार की इमारत का शायद ही कोई ऐसा कक्ष बचा हो, जहां इस कुनबे ने अपनी साधिकार उपस्थिति दर्ज नहीं कराई है। नैतिकता तो ऐसी कि चारा घोटाले में अदालत की कार्यवाही के चलते मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा तो पत्नी को अपनी जगह बिठा दिया। लालू की नैतिकता तो तब भी स्तब्ध कर देने वाले रूप में सामने आई, जब गोधरा कांड के लिए उन्होंने यह संकेत दिए थे कि कारसेवकों से भरे ट्रेन के उस कोच में बाहर नहीं, अंदर से ही आग लगाई गई थी। तेजप्रताप की घोषित पत्नी ऐश्वर्य ने रो-रोकर लालू और उनके परिवार पर प्रताड़ना के आरोप लगाए। न जाने तब लालू ने नैतिकता नाम की चिड़िया के पर क्यों कतर दिए थे। यदि केवल लालू और उनके दोनों बेटों को ही एक तस्वीर के फ्रेम में रखकर देखें तो दिवंगत श्रीलाल शुक्ल जी के लिए पूरी श्रद्धा के साथ ‘भविष्यदृष्टा’ होने की बात कही जा सकती है। क्योंकि शुक्ल के राग दरबारी वाले वैद्य जी और बद्री तथा रुप्पन का यादव परिवार के इन तीन चेहरों से अद्भुत साम्य है। यानी शिवपालगंज के जरिए शुक्ल काफी पहले आज वाला पटना और वहां के जीते-जागते चरित्रों को देख चुके थे। 

दरअसल बेटे तेजप्रताप की करतूत लालू के लिए आपदा में अवसर तलाशने का बड़ा माध्यम बन गई है। बिहार का विधानसभा चुनाव नजदीक है। ‘करामाती कुनबा’ तेजी से अपनी लोकप्रियता खोता जा रहा है। नीतीश कुमार भले ही घनघोर रूप से सत्ता के लालची हों, लेकिन शासन में शुचिता के कई कीर्तिमान रचकर उन्होंने बिहार को लालू एंड कंपनी के समय वाले दर्दनाक अध्यायों से बड़ी राहत का अहसास कराया है। चिराग पासवान और प्रशांत कुमार जैसे चेहरे लालू के चश्मों-चिराग तेजस्वी की सियासी समझ और काबिलियत पर भारी पड़ रहे हैं। भ्रष्टाचार की सनसनी में सनी  राष्ट्रीय जनता दल का आलम यह कि सहयोगी दल ही तेजस्वी के नाम पर एकमत नहीं हो पा रहे हैं। उन्हें डर है कि एक बार तेजस्वी के हाथ सत्ता लगी तो फिर उनके लिए भविष्य संभावनाओं के दरवाजे अनिश्चितकाल के लिए बंद हो जाएंगे। लालू के पास अब मोहम्मद शाहबुद्दीन जैसा अघोषित दत्त्तक पुत्र भी नहीं रहा, जो अपनी माफियागिरी के आतंक से लालू परिवार की नेतागिरी को एक बार फिर चमकाने का बड़ा जरिया बन जाए। उस सबके बीच लालू को अपनी ही बोई एक और फसल का डर भी सता रहा है। जिस जातिगत राजनीति की दम पर वो इतना आगे बढ़े, उसका ही दंश उन्हें झेलना पड़ सकता है। यादव समाज के बीच तेजप्रताप के चलते जो संदेश गया है, वो कहीं न  कहीं चुनाव में लालू की मुसीबत बन सकता है। यही सब कारण हैं कि लालू अपने बेटे को बेदखल करने की घोषणा के साथ यह भी कह रहे हैं कि उसके कामकाज से सामाजिक न्याय के लिए सामूहिक संघर्ष कमजोर हो सकता है। बाकी राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो और घनघोर तरीके से संगीन आरोपों के घिरे परिवार के मुखिया को किस कमजोरी की चिंता सता रही है, उस बारे में कुछ कहना बाद दोहराने से अधिक और कुछ नहीं होगा। यह नौटंकी से अधिक और कुछ नहीं है कि लालू ने मूल्यों की खातिर अपने बेटे को त्यागने का महान उदाहरण पेश कर दिया है। 

‘राग दरबारी’ के अंत में वैद्य जी भी छोटे बेटे रुप्पन को बेदखल करने की घोषणा कर देते हैं। इस घटना के कुछ देर बाद ही श्रीलाल शुक्ल उपन्यास समाप्त कर देते हैं। और उस समय तक रुप्पन केवल ‘कहीं गए हुए हैं और घर नहीं लौटे हैं।’ यह अंत इस बात की पूरी गुंजाइश रखता है कि रुप्पन लौट कर आ जाएंगे। क्योंकि पिता हर गलत हथकंडा अपना कर वह  चुनाव जीत गए हैं, जिसमें अपनी पराजय की आशंका के चलते उन्हें रुप्पन पर नाराज होना पड़ गया था। बिहार का चुनाव हो जाने दीजिए। रुप्पन यादव भी बाइज्जत घर लौट आएं तो कोई ताज्जुब नहीं होगा। और नैतिकता का क्या? वो तो अब वैसी ही हो चुकी है, जैसा श्रीलाल शुक्ल ने ‘राग दरबारी’ में शिक्षा पद्धति के लिए कहा था, ‘रास्ते में पड़ी हुई कुतिया, जिसे कोई भी लात मार सकता है।’

(लेखक तेजभान पाल हमारे प्रकाशन हिंदी दैनिक लोकदेश के प्रधान संपादक हैं