
तेजभान पाल
ये बहुत कुछ वैसा ही है, जैसे कि एक नेताजी कभी भाषण दे रहे थे। उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण पर अपनी बात रखी। छोटे परिवार के लिए दनादन लाभ गिनाते चले गए। तब भीड़ में से कोई बोला, ‘मंत्रीजी! मगर खुद आपके तो आठ बच्चे हैं।’ सकपकाए मंत्री ने कहा, ‘आठ बच्चे तब हुए, जब मैं उद्योग मंत्री था। अब तो परिवार कल्याण मंत्री ही हूं।’ भोपाल से लेकर सारे देश को एक बार फिर दहला देने वाले लव जिहाद कांड को लेकर यह लतीफा बहुत क्रूर रूप में याद आ रहा है। क्योंकि भोपाल के शहर काजी ने इस बारे में जो कहा है, वो लव जिहाद वाले उद्योग से लेकर परिवार कल्याण वाली सोच तक उन्हें भी सवालों के दायरे में लाता है। क्योंकि अब जो शहर काजी इस बात को कह रहे हैं कि इस्लाम में लव जिहाद की कोई जगह नहीं है, क्या उन्हें ये नहीं पता रहा होगा कि इसी भोपाल में लव जिहाद की घोषित-अघोषित प्रैक्टिस के बीच न जाने बीते कितने ही वर्षों से हिंदू लड़कियों को मुस्लिम बनाने का खेल चलता चला आ रहा है? चलिए, एक बारगी अपने विवेक और सहज बुद्धि को ताक पर रखकर यह मान लें कि शहर काजी सैय्यद मुश्ताक अली नदवी को इस सबका कोई इल्म ही नहीं रहा होगा, तब भी बात यह कि केवल जुबानी जमा खर्च वाला उनका बयान ही क्या पर्याप्त है? जब भोपाल सहित मध्यप्रदेश की न जाने कितनी ही हिंदू लड़कियों को लव जिहाद के दलदल में धकेलने वाले भयानक गुनाह की परतें खुल रही हैं, तब क्यों नहीं काजी साहब की तरफ से यह पहल भी हो रही है कि इस गिरोह के गुनाहगारों के खिलाफ कोई फतवा जारी करने की पहल की जाए? जब इस गिरोह का सरगना फरहान खुलकर कहता है कि उसे निर्दोष हिंदू लड़कियों को सामूहिक ज्यादती और ब्लैकमेल का शिकार बना कर सवाब मिला, तब क्यों नहीं शहर काजी यह कहते हैं कि इस्लाम की ऐसी तौहीन करने वालों के खिलाफ फतवा जारी हो? समूचे सच्चे मुसलमान उनके खिलाफ एकजुट होकर खड़े हो जाएं?

(तेजभान पाल )
जिस मामले को लेकर असंख्य परिवार क्रोध और डर से घिर गए हों, उस पर शहर काजी की ऐसी सतही प्रतिक्रिया कई सवाल उठा रही है। क्योंकि मामला ऐसा ही दिखता है कि, ‘ये सब अपराध जब चल रहा था, तब मैं एक आम मुस्लिम था और अब इसलिए ‘कुछ’ कह दे रहा हूँ, क्योंकि में शहर काजी हो चुका हूं।’ खैर, जनाब नदवी ने जो भी कहने का कर्तव्य पूरा किया, उसका सच किसी से छिपा नहीं है। लेकिन इस्लाम के बाकी ठेकेदारों का भी क्या? क्योंकि यह बात ऐसे समय कही गई है, जब लव जिहाद की बात विशुद्ध रूप से ‘हिंदू-मुस्लिम’ वाला खतरनाक स्वरूप ले चुकी है। मध्यप्रदेश की बात करें तो यहां शायद यह अपने आप में ऐसा दुर्लभ मामला है, जब बड़े से बड़े अखबार और अन्य मीडिया माध्यम भी इस मामले के आरोपियों के साथ खुलकर ‘मुस्लिम’ और पीड़िताओं के लिए ‘हिंदू’ के संबोधन का प्रयोग कर रहे हैं। ऐसा जान-बूझकर नहीं किया जा रहा। बल्कि ये उस साजिश की प्रतिक्रिया में हो रहा है, जो लव जिहाद गैंग की करतूतों की रग-रग में समाई हुई है। इसलिए एक बात समझ से परे है। वो ये कि मुस्लिम वर्ग के शेष अधिकतर जानकार और प्रबुद्ध लोग इस विषय पर क्यों मौन साधे हुए हैं? जबकि उनके लिए भी यह समय चुप्पी तोड़ने भर नहीं, बल्कि पुरजोर तरीके से अपनी बात रखने का है। उन्हें भी आगे आकर यह बताना होगा कि किस तरह लव जिहाद गैंग ने वस्तुतः इस्लाम की अपनी मनमर्जी वाली घातक व्याख्या करके अपने ही मजहब को ठेस पहुंचाने का काम किया है। पता नहीं वो लोग कहां कंदराओं में जा छिपे हैं, जो इससे पहले तक विचित्र किस्म के फतवे जारी करने से परहेज नहीं करते थे। जिन्हे किसी मुस्लिम के लिबास से लेकर उसके खुशी प्रकट करने के अनेक तौर- तरीकों के खिलाफ भी फतवा-फतवा खेलने का चस्का सवार रहता है, वो इस पर कुछ क्यों नहीं बोल रहे? क्या उन्हें ये नहीं दिखता कि भोपाल के एक फरहान और उसके मुट्ठी-भर मुस्लिम दोस्तों के चलते उनका अपना ही धर्म कितने प्रतिकूल तरीके से बहस का विषय बनता जा रहा है? देवबंद से लेकर देश के अनेक हिस्सों में फतवा उद्योग चला रहे ये लोग यदि सचमुच इस्लाम की मालूमात रखते हैं, उसके हितैषी है, तो क्यों नहीं वो बाकायदा फतवे की शक्ल में लव जिहाद करने वालों को कोई सख्त संदेश दे रहे हैं? उनका मौन खटकता है। चुनांचे उन्हें भी चाहिए कि अपने बयान/फतवे की शक्ल में यह बात तथ्यों के साथ सामने रखें कि लव जिहाद करने वाले इस्लाम की अवधारणा के किस कदर और कैसे -कैसे खिलाफ जा रहे हैं। यदि ऐसे लोग भी भोपाल के शहर काजी की ही तरह अपना सामाजिक दायित्व निभाते हैं तो इस काण्ड को लेकर समाज में तेजी से पनपती अविश्वास वाली खाई को कम किया जा सकता है। क्योंकि इस वारदात के खुलासे के बाद यह बात और भी तकलीफ के साथ महसूस की जा रही है कि मुस्लिम समाज के प्रभावी तबके ने इसे लेकर चुप्पी साध रखी है। और याद रखिए कि जब चुप्पी की कोई ठोस वजह नजर न आए तो उसे सहमति का सूचक मान लिया जाता है। जिसका नतीजा अक्सर बेहद नुकसानदेह ही होता है। इसलिए यदि आप इस्लाम के सच्चे अनुयायी हैं तो फिर भोपाल में भी दिखी लव जिहाद वाली मानसिकता के खिलाफ कम से कम फतवा जारी करने का ही साहस दिखाइए।
लव जिहादियों को फांसी देने की भोपाल की सडकों पर गूंजी मांग यकीनन किसी मजहब के सभी अनुयायियों को टारगेट पर नहीं लेती है, लेकिन जिन्होंने मजहब के नाम पर मासूम लड़कियों को टारगेट पर लिया, उनकी आड़ में जघन्य अपराध का मामला यदि हिंदू-मुस्लिम के बीच विद्वेष में बदल जाए तो इस जहरीली हवा को रोकने के लिए हरेक चुप्पी का अतिक्रमण तोड़ा जाना बहुत जरूरी है। आप फतवा दें। नसीहत दें। फटकार दें। यह आपका निर्णय है। लेकिन कुछ जरूर करें जो इस समाज को ऐसी नजीर दे जो उन्मादी सोच पर नियंत्रण के लिए किसी मजबूत ज़ंजीर का काम कर सके। सच तो यह कि इस सबको लेकर भोपाल के शहर काजी ने खुलकर अपने धार्मिक अधिकारों का इस्तेमाल करने की जगह सतही तौर पर कुछ कह दिया। बाकी इस सब पर मुंह में दही जमाए बैठे लोग तो और भी बड़े गुनाहगार हैं। खैर, इस सबकी रोशनी में अंत में इतना ही कहा जा सकता है कि ‘कट्टरपंथी आपस में राजी, तो क्या कर लेगा शहर काजी?’ बशर्ते, काजी वाकई कुछ करना चाह रहे हों।