
मई में दक्षिण भारत के ज्यादातर हिस्से मौसम के तीखे तेवर के चलते बुरी तरह तपते हैं. आने वाली 19 मई, 2025 को एक दक्षिणी राज्य केरल में भीषण गर्मी के बीच भी नवाचार वाली शीतल पवन के झोंके महसूस किए जाएंगे। क्योंकि इस दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू इस राज्य के पहाड़ और घने जंगलों से घिरे विश्वप्रसिद्ध तीर्थ सबरीमाला जाएंगी।
मुर्मू इस पावन स्थल पर जाने वाली इस देश की पहली राष्ट्रपति होंगी। उनके आगमन की तैयारी चल रही है और पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय सेना के ऑपरेशन सिंदूर के मद्देनजर राष्ट्रपति की सुरक्षा के तगड़े बंदोबस्त किए जा रहे हैं.
राष्ट्रपति वहां भगवान अय्यप्पा स्वामी जी के दर्शन कर उनका आशीर्वाद मांगेंगी।
सबरीमाला में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है, किंतु मासिक धर्म से धारण करने से पूर्व एवं इसके पश्चात वाले वयस की स्त्रियों को यहां जाने की अनुमति है. मामला महिलाओं से विभेद का नहीं है. चूंकि अय्यप्पा स्वामी को ‘चिर ब्रह्मचारी’ माना जाता है. इसलिए रजस्वला महिलाएं मंदिर में उनके दर्शन नहीं कर सकतीं
यदि प्रकृति के कण-कण में ईश्वरीय उपस्थिति का अलौकिक अनुभव करना हो तो सबरीमाला तीर्थ इसके लिए निर्विवाद रूप से अलौकिक स्थान है. यह पत्तनमतिट्टा ज़िले में पेरियार टाइगर अभयारण्य के भीतर सबरिमलय पहाड़ पर स्थित एक महत्वपूर्ण मंदिर परिसर है। यह विश्व के सबसे बड़े तीर्थस्थलों में से एक है.
मकर संक्रांति पर सबरीमाला तीर्थ क्षेत्र में मकरविलक्कू पर्व की धूम देखने मिलती है. समूचे दक्षिण भारत सहित देश के अन्य हिस्से और विदेश से लोग यहां पहुँचते हैं.
बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस मौके पर मकर संक्रांति के 48 दिन पहले से कठिन व्रत धारण करते हैं. वे इस अवधि में पूरी तरह ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं. साथ ही मांसाहार और शराब तथा अन्य व्यसनों से दूर रहते हैं.
मकरविलक्कू से पहले समूचे दक्षिण भारत में आपको असंख्य लोग काले कपडे पहने दिख जाएंगे। ये व्रतधारी होने की खास वेशभूषा है. आदर से ‘स्वामी’ कहे जाने वाले ये लोग सबरीमाला की यात्रा से पहले नारियल एवं अन्य पूजा सामग्री की एक पोटली ‘इरुमुडी’ धारण करते हैं. इसका ठीक वैसे ही आदर किया जाता है, जैसा उत्तर भारत में कावड़िये अपनी कांवड़ का ध्यान रखते हैं.
मकरविलक्कू का इतना अधिक उत्साह रहता है कि केरल सहित तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से हजारों लोग इस पर्व के कई दिन पहले घर से पैदल निकल पड़ते हैं. वे रास्ते में पड़ने वाले कमोबेश प्रत्येक महत्वपूर्ण मंदिर में दर्शन करते हुए अंत में सबरीमाला पहुँचते हैं.
मकर संक्रांति के दिन लाखों की संख्या में काले वस्त्र पहने लोगों को सबरीमाला की पहाड़ियों पर देखना बेहद रोचक अनुभव होता है. सारा वातावरण ‘स्वामिये शरणम् अय्यप्पा’ से गूंजता रहता है. इन व्रतधारियों में कम उम्र के बच्चे भी बड़ी संख्या में दिख जाएंगे।
बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी मिलते हैं, जो व्रत की अवधि में समूह बनाकर घर से तमाम मंदिरों के लिए निकल पड़ते हैं. व्रत की शुद्धता कायम रहे, इसलिए ये लोग खाने का कच्चा सामान और उसे पकाने का तमाम इंतजाम साथ लेकर ही निकलते हैं. बड़ी से लेकर छोटी गाड़ियों का ऐसा समूह आपको उन 48 दिनों में दक्षिण भारत में जगह-जगह दिख जाएगा।
मंदिर से पहले के प्राकृतिक दृश्य आपको सम्मोहित करने की पूरी क्षमता रखते हैं. मंदिर के लिए सीढ़ियों की कई किलोमीटर लंबी दूरी नापने से पहले श्रद्धालु नीचे बह रही पंबा नदी में स्नान अवश्य करते हैं. इससे पहले रास्ते में चारों तक फैले घने जंगल देखना भी अद्भुत अनुभव है.
मकर संक्रांति की रात आकाश में मकर नक्षत्र के उदय की खगोलीय घटना देखी जाती है, और मकरज्योति पोन्नम्बलमेडु में दिखाई देती है। संध्या काल में मकरविलक्कु और उसके बाद दीप पूजा के बाद भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। यह महोत्सव मकरम (जनवरी के मध्य) की पहली से पांचवीं तिथि तक चलता है
सबरीमाला मंदिर की परंपराओं के अनुसार, पवित्र 18 स्वर्ण सीढ़ियों पर चढ़ने की अनुमति केवल उन्हीं श्रद्धालुओं को दी जाती है, जिन्होंने व्रत पूरा कर सिर पर इरुमुडी बांधकर मंदिर में प्रवेश किया हो. इस धार्मिक प्रथा और पवित्रता का कड़ाई से पालन किया जाता है.
इन सीढ़ियों पर मंदिर परिसर में अर्पित घी सहित पानी से इतनी चिकनाई हो जाती है कि यहां तक की यात्रा के इस अंतिम पड़ाव को पार करना मुश्किल हो जाता है. लेकिन सीढ़ियों के दोनों तरफ तैनात पुलिस के जवान श्रद्धालुओं का एक के बाद एक ऐसे हाथ थामते हैं कि वो आसानी से ऊपर चढ़ जाते हैं.
सौभाग्य से मुझे भी एक बार व्रतधारी होने के नाते सबरीमाला तीर्थ तक जाकर श्रद्धेय अय्यप्पा स्वामी जी के दर्शन का पुण्य मिला है. यह एक ऐसा स्थान है, जहां जाकर फिर एक ही सवाल जिंदगी भर पीछा करता है ‘प्रभु, फिर कब बुलाएंगे?’
(लोकदेश के लिए रत्नाकर त्रिपाठी की रिपोर्ट)